वह अलंकारिक कल्पना, जिससे पुराणकारों ने ईश्वरावतारों
को अजीब अजीब और भिन्न भिन्न वेष दिए हैं, सच्चो मालूम
होती है; क्योंकि वीरता का एक विकास दूसरे विकास से कभी
किसी तरह मिल नहीं सकता वीरता की कभी नकल नहीं
हो सकती; जैसे मन की प्रसन्नता कभी कोई उधार नहीं ले
सकता। वीरता देश-काल के अनुसार संसार में जब कभी
प्रकट हुई तभी एक नया स्वरूप लेकर आई, जिसके दर्शन करते
ही सब लोग चकित हो गए-कुछ बन न पड़ा और वीरता
के आगे सिर झुका दिया।
जापानी वीरता की मूर्ति पूजते हैं। इस मूर्ति का दर्शन
वे चेरी के फूल की शांत सी में करते हैं। क्या ही सच्ची
और कौशलमयी पूजा है ! वीरता सदा जोर से भरा हुआ ही
उपदेश नहीं करती । वीरता कभी कभी हृदय की कोमलता का
भी दर्शन कराती है। ऐसी कोमलता देखकर सारी प्रकृति
कोमल हो जाती है; ऐसी सुंदरता देखकर लोग मोहित हो जाते
हैं। जब कोमलता और सुंदरता के रूप में वह दर्शन देती है
तब चेरी-फूल से भी ज्यादा नाजुक और मनोहर होती है।
जिस शख्स ने यूरोप को 'क्रूसेड्ज' के लिये हिला दिया वह
उन सबसे बड़ा वीर था जो लड़ाई में लड़े थे। इस पुरुष में
वीरता ने आँसुओं और पाहो का लिबास लिया। देखो, एक
छोटा सा मामूली आदमी यूरोप में जाकर रोता है कि हाय
हमारे तीर्थ हमारे वास्ते खुले नहीं और यहूद के राजा यूरोप