पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१५५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १५० )


सत्वगुण के समुद्र में जिनका अंत:करण निमग्न हो गया वे ही महात्मा, साधु और वीर हैं। वे लोग अपने क्षुद्र जीवन को परित्याग कर ऐसा ईश्वरीय जीवन पाते हैं कि उनके लिये संसार के सब अगम्य मार्ग साफ हो जाते हैं।आकाश उनके ऊपर बादलों के छाते लगाता है। प्रकृति उनके मनो- हर माथे पर राज-तिलक लगाती है। हमारे असली और सच्चे राजा ये ही साधु पुरुष हैं। हीरे और लाल से जड़े हुए, सोने और चाँदी से जर्क बर्क सिंहासन पर बैठनेवाले दुनिया के राजाओं को तो, जो गरीब किसानों की कमाई हुई दौलत पर पिडोपजीवी होते हैं, लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है। ये जरी, मखमल और जेवरों से लदे हुए मांस के पुतले तो हरदम काँपते रहते हैं। इंद्र के समान ऐश्वर्यवान् और बलवान् होने पर भी दुनिया के ये छोटे "जॉर्ज" बड़े कायर होते हैं। क्यों न हो, इनकी हुकूमत लोगों के दिलों पर नहीं होती। दुनिया के राजाओं के बल की दौड़ लोगों के शरीर तक है। हाँ, जब कभी किसी प्रक- बर का राज लोगों के दिलों पर होता है तब इन कायरों की बस्ती में मानो एक सच्चा वीर पैदा होता है।

एक बागी गुलाम और एक बादशाह की बातचीत हुई। यह गुलाम कैदी दिल से आजाद था। बादशाह ने कहा-मैं तुमको भी जान से मार डालूँगा। तुम क्या कर सकते हो ? गुलाम बोला-"हाँ, मैं फाँसी पर तो चढ़ जाऊँगा; पर तुम्हारा