पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१२७

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वेगों की सहायक हैं, वे मनोवेगों के लिये उपयुक्त विषय मात्र ढूँढ़ती हैं। मनुष्य की प्रवृत्ति पर कल्पना को और मनोवेगों को व्यवस्थित और तीव्र करनेवाले कवियों का प्रभाव प्रकट ही है।

प्रिय के वियोग से जो दुःख होता है वह भी करुणा कह- लाता है क्योंकि उसमें दया वा करुणा का अंश भी मिला रहता ऊपर कहा जा चुका है कि करुणा का विषय दूसरे का दुःख है। अत: प्रिय के वियोग में इस विषय की संप्राप्ति किस प्रकार होती है यह देखना है। प्रत्यक्ष निश्चय कराता है और परोक्ष अनिश्चय में डालता है। प्रिय व्यक्ति के सामने रहने से उसके सुख का जो निश्चय होता रहता है वह उसके दूर होने से अनिश्चय में परिवर्तित हो जाता है। प्रस्तु, प्रिय के वियोग पर उत्पन्न करुणा का विषय प्रिय के सुख का अनिश्चय है। जो करुणा हमें साधारण जनों के उपस्थित दुःख से होती है वही करुणा हमें प्रियजनों के सुख के अनिश्चय मात्र से होती है। साधारण जनों का तो हमें दु.ख असह्य होता है पर प्रिय जनों के सुख का निश्चय ही । अनिश्चित बात पर सुखी वा दुखा होना ज्ञानवादियों के निकट अज्ञान है इसी से इस प्रकार के दुःख वा करुणा को विसी किसी प्रांतिक भाषा में 'मोह' भी कहते हैं। सारांश यह कि प्रिय के वियोग-जनित दुःख में जो करणा का अंश रहता है उसका विषय प्रिय के सुख का अनि- श्चय है। राम जानकी के वन चले जाने पर कौशल्या उनके सुख के अनिश्चय पर इस प्रकार दुखी होती हैं-