पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/११८

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पर यह बात ध्यान रखने की है कि यह केवल अन्य स्थानों के शब्द-मात्र अपने में मिला सकती है, प्रत्यय आदि नहीं ग्रहण कर सकती।

अब पद्य की शैली पर भी कुछ ध्यान देना चाहिए । भाषा का उद्देश्य यह है कि एक का भाव दूसरा ग्रहण करके अपने अन्तःकरण में भावों की अनेकरूपता का विकास करे।

ये भाव साधारण भी होते हैं और जटिल भी। अतः जो लेख साधारण भावों को प्रकट करता है, वह साधारण ही कह- लावेगा, चाहे उसमें सारे संस्कृत कोशों को ढूँढ़ ढूँढ़ शब्द रखे गए हों, और चार चार अंगुल के समास बिछाए गए हों; पर जो लेख ऐसे जटिल भावों को प्रकट करेंगे, जो अप- रिचित होने के कारण अंतःकरण में जल्दो न सेंगे, कहलावेंगे, चाहे उनमें बोलचाल के साधारण शब्द ही क्यों न भरे हों। ऐसे ही लेखों के बीच जो नए नए भावों का विकास करने में समर्थ हो, जो इनके जीवन-क्रम को उलटने- पलटने की क्षमता रखता हो वही सच्चा साहित्य है। लेखकों को अब इस युग में बाण और दंडी होने की आकांक्षा उतनी न करनी चाहिए जितनी वाल्मीकि और व्याल होने की, वर्क, कारलाइल और रस्किन होने की।

कविता का प्रवाह आजकल दो मुख्य धाराओं में विभक्त हो गया है। खड़ी बोली की कविता का प्रारंभ थोड़े ही दिनों से हुआ है। अतः अभी उसमें उतनी शक्ति और सर-

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