पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१०७

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ऐश्वर्य का कहना ही क्या है!वह तेजस्वी तारागणों से भरा मानो वनों से भरे थाल की भाँति दिखाई देता है। नक्षत्रों का निय- मित अस्तादय, उनका भ्रमण, उनकी गति इत्यादि देखकर कुतू- हल होता है और ईश्वर की अनंतता और विश्व-निर्माण शक्ति देखकर उस के विषय में पूज्य भाव पैदा होता है। जिस समय हम तारों की ओर देखते हैं तो वे हमें स्थिर और शांत दिखाई देते हैं परंतु वे उस समय कल्पनातीत वेग से यात्रा करते रहते हैं। यह चमत्कार स्वप्न में भी हमारी समझ में नहीं आता।

संपूर्ण आकाश-मंडल में दस करोड़ से भी अधिक तारे हैं। सिवाय इसके कितने ही ग्रहों के उपग्रह भी हैं इतना ही नहीं किंतु जिनका अब तेज नष्ट हो गया है ऐसे अनेक गोले आकाश में हैं। वे अपने समय में सूर्य के समान प्रकाशमान ये, परंतु अब तेजहीन और शीतल हो गए हैं। एक वैज्ञानिक कहता है कि हमारा सूर्य भी लगभग एक करोड़ सत्तर बरस के बाद वैसा ही तेजहीन हो जायगा। धूमकेतु अर्थात् पुच्छल तारे भी आकाश में हैं। उनमें से थोड़े ही दूरबीन के बिना दिखाई पड़ सकते हैं। इनको छोड़ प्राकाश में भ्रमण करनेवाले अनंत तारापुंज हैं जो हमारी दृष्टि से बाहर हैं।

तारों की अनंत संख्या को देख मनुष्य कुंठित हो जाता है। फिर उनके विशाल आकार और एक दूसरे की दूरी का ज्ञान होने पर उसका क्या हाल होता है, इसका पूछना ही क्या है। समुद्र अत्यंत विस्तृत और गहरा है और उसे असीम कहने की