पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१०४

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और सामने के द्वोप में छायामय अरण्य, हरी दूब से भरे मैदान और पीले रंग के खेत साफ देखने में आते हैं। टूटी चट्टानों के भाग भी स्पष्ट झलकते हैं और मछुओं की डोंगियाँ और काले पाल दृष्टिगोचर होते हैं।

समुद्र का यह स्वरूप बहुत समय तक नहीं टिकता । अचा- नक आकाश में बादल छा जाते हैं। हवा जोर से बहने लगती है और तूफान के चिद् दिखाई देते हैं। वृक्षों के पत्तों पर गिरती हुई पानी की बूंदों की टप टप आवाज सुनाई देती है और सामने का किनारा मानों तूफान के भय से छिग जाता है। देखते देखते समुद्र का रंग काला हो जाता है। वह खैालता हुआ गंभीर गर्जन करता है। जब वह शांत हो जाता है तब फिर घननीत कलेवर धारण करता है और सूर्य के अस्त होने के पूर्व उस पर धुंधलापन छा जाता है। पर अस्तभानु के समय फिर एक नई सुनहरी छटा से उज्ज्वल और चमकीला बन जाता।इस प्रकार समुद्र के रंग दिन भर बदलते ही रहते हैं।

समुद्र की शोभा में रात्रि के समय भी भाँति भांति के परिवर्तन होते रहते हैं। कभी घना अँधेरा छा जाता है, कभी अनंत तारागणों से शोभित आकाश के सामने वह प्रशांत दर्पण की नाई स्थिर दिखाई देता है, कभी चंद्र की सुंदर चाँदनी में सारा विश्व धुलकर धवन और शीतल बन जाता है।

कभी तूफान के समय प्राकाश में इंद्रधनुष दिखाई देता है। इस इंद्रधनुष के अत्यंत सुंदर और प्राकृतिक रंगों के