बाबू साहेब स्वयं जैसे बुद्धिमान् विद्वान् चतुर और बहुकला कुशल थे पैसेहो वे और और गुस्यो जनों का भी आदर किया करते थे। उनका उचित सम्मान करते तथा उन्हें उचित पारितोषिक भी देते थे। इसीसे इनके यहां सदेच अच्छे पच्छे पंडितों, कवियों और अन्य प्रकार के गुणो लोगों का जमाव रहता था। सन् १८७३ ही में आपने "तदीय समाज" नाम की एक सभा स्थापित की जिसका उद्देश्य केवल प्रेम और धर्म संबंधी विषयों पर विचार करना था। दिल्ली दरवार के समय इस समाज ने गोरक्षा के लिये एक लाख प्रजा के दस्तखत करवाए थे। इसी प्रकार इन्होंने कई एक सभा समाजें स्थापित की, पत्र निकाले, या सहायता दे कर निकलयाए । पौर निज से पारितोपिक पौर इनाम दे दे कर कई एक को कवि और सुलेखक बना दिया। इन्होंने अधिकतर नाटक पार कविता में ही सब ग्रंथ रचे, इनके रचित ग्रंथों में काव्यों में प्रेम फुलवारी, नाटकों में सत्य हरिदचंद्र चंदावली, धर्म संबंधो ग्रंथों में तदोयसर्वस्व और ऐतिहासिक रचना में कादमीर कुसुम, चुने हुए ग्रंथ हैं। आप ऐतिहासिक विषय के बड़े मेमो थे पार मापकी रचना प्रायः सब ऐतिहासिक विपयों से संबंध रपती है। पाय हरिश्चंद्र जी को हिंदी चिर प्राणी रहेगी। यह इन्होंके उद्योग का फल है कि पाजदिन हिंदी का इतना प्रचार है। इसकी सहायता में इन्होंने अपनेको सब प्रकार के सुखों से वंचित कर दिया। हिंदी भाकाश मंडल में, जब कि घोर पंधकार रहा था, मारतेंदु के उदय से पह प्रकाश फैला कि जिसको कौमुदी से अब तक लोग मानंदित पर मुखी होते हैं। इन्हीं बातों का स्मरण कर समस्त हिंदी समाचारपत्रों ने भारतंदु की उपाधि से इन्हें
पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/७७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।