भाग है और दूसरे जब केवल चालीस जीवनचरित्रों के संग्रह करने में इतना समय लग गया तो यदि इनको संख्या बढ़ा दी जाती तो न जाने कितना समय लगता। यदि इस ग्रंथ का मादर हुआ और प्रकाशक का व्यय मात्र भी निकल आया तो इस ग्रंथ के दूसरे भाग के प्रकाशित करने का उद्योग किया जायगा। यदि किसी पेसे महाशय का चित्र और चरित्र इस भाग में छूट गया हो जिसका रखना पावश्यक और उचित था तो वे क्षमा करेंगे और उसकी सूचना देकर मुझे अनुगृहीत करेंगे जिसमें मैं दूसरे भाग में उस त्रुटि को दूर कर सकू। प्रत्येक जीवनचरित को मैंने उसके नायक की जन्म तिथि के क्रम से अंकित किया है जिसमें किसीको इस बात के कहने पर सोचने का अवसर न प्राप्त हो कि मैंने उनकी योग्यता के अनुसार इस ग्रंथ में उन्हें स्थान नहीं दिया। मेरी दृष्टि में तो सब समान सम्मान के पात्र हैं और मैं किसीको मागे बढ़ाना प्रथया पीछे हटाना अपनी सामर्थ्य के बाहर समझता हूं। इसलिये मुझे विश्वास है कि इस ग्रंथ के पाठकगण इस ग्रंथ को त्रुटियों को मोर ध्यान न देकर इसको सादर स्वीकार करने की कृपा करेंगे। इस ग्रंथ के लिखने में मुझे अनेक मित्रों से सहायता मिली जिन सबका महदय से धन्यवाद देता। पंडित श्रीधर पाठक का मैं विशेष अनुगृहीत है कि उन्होंने एक येरस पंथ को मादि से अंत तक पढ़ कर उचित परामनों से मुझे याधित किया है। माशा है कि जिस उद्देश्य से यह संग्रह किया गया है उसमें सफलता प्राप्त हो मगर यह ग्रंथ हिंदी के प्रेमियों में स्नेहबंधन के हद करने में समर्थ हो। १जनवरी १९०९। श्यामसुन्दर दास।
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