निवेदन
हिन्दी भाषा के प्रेमियों को इससे बढ़कर संतोप और आनंद की बात और क्या हो सकती है कि इसके पढ़नेवालों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जाती है और इसमें नित्य नए और सुंदर ग्रंथ प्रकाशित होते जाते हैं। जिस गद्य में आज हम लिखते पढ़ते हैं उसकी उत्पत्ति लल्लू जो लाल ने १९वीं शताब्दी के प्रारंभ में कलकत्ते में की। लल्लू जी लाल आगरे के रहनेवाले थे और पीछे से फोर्टविलियम कालेज में नौकर होगए थे। यहां पर उन्होंने अंगरेज़ी अफसरों के पढ़ने के लिये उपयुक्त ग्रंथों का प्रभाव देख कर पहिले पहिल प्रेमसागर लिखा, फिर उनकी देखा देखी और लोगों ने भी ग्रंथ लिखे, पर वास्तव में आधुनिक गद्य ग्रंथ लिखने की चाल आगे चल कर १९वीं शताब्दी के मध्य में निकली। इस गद्य को उत्पत्ति से यह तात्पर्य नहीं है कि पहिले गद्य था ही नहीं, किसी न किसी रूप में था नहीं तो क्या लोग पद्य में बात चीत करते थे? गद्य बोल चाल में अवश्य था पर भिन्न भिन्न प्रांतों और स्थानों में भिन्न भिन्न रूप में था जिन्हें हम आज कल "बोलियों" का नाम देते हैं, जैसे अगरे के निकट ब्रज-भाषा बोली जाती है। गद्य की उत्पत्ति करने से तात्पर्य यह है कि ग्रंथ लिखने की एक संगठित रीति को नींव डालना । कुछ लल्लू जो लाल ने यह सोच कर तो प्रेमसागर लिखा ही न था कि जिस भाषा की ये नींव डाल रहे हैं वही आगे चल कर १०० वर्ष के भीतर ही एक साधारण