पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/२१८

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की लत पड़ जाने से इसमें कुछ बाधा पड़ने लगी। यह व्यसन बहुत दिनों तक न रहा। जब इससे पढ़ने में बाधा पड़ने लगी और सहपाठी आगे बढ़ निकले तब इन्हे स्वयं ग्लानि आई, जिसका परिणाम यह हुआ कि आगे की पढ़ाई निर्विघ्न चली। सन् १८९१ ई॰ में इन्होंने एँट्रेंस का परीक्षा पास की। फिर क्रमश: सन् १८९३ ई॰ में एफ॰ ए॰ और सन् १८९५ ई॰ में बी॰ ए॰ की परीक्षा पास की। इस परीक्षा में अवध में इनका नंबर पहिला रहा और अँगरेज़ी में "आनर्स" प्राप्त हुए। यह प्रतिष्ठा इसके पहिले कैनिंग कालेज के किसी विद्यार्थी को नहीं प्राप्त हुई थी। इसके लिये इन्हें दो स्वर्णपदक मिले और कालेज के हाल में स्वर्णाक्षरों में इन का नाम लिखा गया जो अबतक वर्तमान है। सन् १८९६ ई॰ में इन्होंने अँगरेज़ी में एम॰ ए॰ परीक्षा पास की। इस बेर अपने कालेज में इनका नंबर पहिला और युनिवर्सिटी में चौथा रहा। इनके शिक्षक इनसे सदा प्रसन्न रहते थे और इनकी कुशाग्र बुद्धि पर मोहित थे। कई अध्यापकों ने बड़े प्रशंसासूचक सर्टिफ़िकेट इन्हें दिए हैं।

यों विद्याध्ययन समाप्त करके सन् १८९७ ई॰ में ये डिप्टी कलक्टर नियत हुए और सन् १९०६ ई॰ में डिप्टी सुपरिंटेंडेंट आाफ़ पुलिस। इस पद पर रहकर ये कई बेर सुपरिंटेंडेंट पुलिस का काम योग्यता और सफलतापूर्वक कर चुके हैं। आजकल स्पेशल ड्यूटी पर नियत हैं। सर्कारी सेवा में इनकी बहुत कुछ प्रतिष्ठा और ख्याति है। अभी थोड़े ही दिन हुए कि इटावे में कुछ दुष्टों ने एक षडयंत्र में सानकर इन्हें सर्कार का विरोधी सिद्ध करना चाहा था, पर ईश्वर की इच्छा से सारा भंडा फूट गया और इनकी निर्दोषिता सिद्ध हो गई।

मिश्र जी का विवाह ११ वर्ष की अवस्था में हुआ। सन् १८९३ ई॰ में इन्हें पहिली संतति एक कन्या हुई पर जन्म के दूसरे दिन