( ११९ ) रवि के साथ हो साथ माता का भी विदुपा होना मानो सोने में सुगन्ध का दुर्लभ संयोग होगया। इन्हें हिंदी के बहुत से कवित्त कंठस्थ थे जिनका वे नित्य पाठ करतों और जिन्हें उनके अयोध वालक बड़े चाव से सुनते । ठीक कहा है कि बालपने के संस्कारों का आगे चल कर बड़ा प्रभाव पड़ता है । माता पिता दोनों के हिंदी-अनुराग का समुचित प्रभाव बालकों पर पड़ा। मिश्र बालदत्त के चार पुत्र और दो कन्याएं हुई। सबसे बड़े पडित शिवविहारीलाल हैं जिन्होंने गत २२ वपों से लखनऊ में वकालत करके वहुत कुछ यश और धन कमाया है । दूसरे पंडित 'गणेशविहारी मिश्रं हैं जो घर की ज़मीदारो आदि कार्यों की देख भाल करते हैं और इससे जो समय बचता है उसे भापा-ग्रंथों के पठन-पाटन में बिताते हैं। तीसरे हमारे चरितनायक पंडित श्यामविहारी मिश्र हैं और चौधे तथा सबसे छोटे भाई पंडित मुकदेवविहारी मिश्र हैं। पंडित श्यामबिहारी मिश्र का जन्म भाद्र कृष्ण ४ संवत् १९३० (१२ अगस्त १८७३ ) को इटौंजे ( लखनऊ के निकट ) में हुआ । लड़कपन में ये बड़े उपद्रवी और चंचल थे। सात वर्ष की अवस्था में इन्हें पढ़ना प्रारम्भ कराया गया। पहिले उर्दू की शिक्षा दी गई । हिंदी इन्हें कभी नियत रूप से नहीं पढ़ाई गई । अपने साथियों को देखा देखी तथा वंशपद्धति के अनुसार हिंदी इन्होंने आप हो साख ली। इस पोर इनकी विशेष रुचि होने से धीरे धीरे इन्होंने इसमें अच्छी दक्षता प्राप्त फरली और अब हिंदी के अच्छे कपि तथा लेखक गिने जाते हैं । १५-१६ वर्ष की अवस्था में ही इन्हें हिंदी कविता करने की रुचि हो गई थी । बारह वर्ष की अयस्ण होने पर इन्होंने अँगरेजी पढ़ना प्रारम्भ किया। पहिले तो कुछ दिनों तक पढ़ने में अच्छा जी इन्होंने लगाया पर फिर चौसर
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