प्रकाशित किए। पर फिर म जाने में प्रापने यह प्रेस भी वं दिया और तंत्रशाखका उबार करने में भी हाथ घोच लिया। पंडित बलदेयप्रसाद जी को मिस्मंतिम विद्या में बड़ा प्रेम था पर मालूम होता है प्राय उसमें अभ्यस्त भी ध। पहिले पहिल पापने एक मित्र के पनुरोध सं जागती ज्योति नामक मिस्मरिजन की पहिली पुस्तक रची। इसके याद मापको पुस्तक प्रययन का घरफा पड़ गया और माप एक के याद एक ग्रंथ लिखते गए। इन्होंने सय मिला फर काई २५ पुस्तकें लिखी हैं जिनमें से कुछ महाराष्ट्री, यंगला पार गुजरातो का अनुयाद हैं, कुछ संस्कृत का अनुयाद है पार कुछ स्वरचित हैं । आपकी लिखी हुई बहुत सी पुस्तकें व्यंकटेश्वर पार भारतवासी समाचार-पत्रों के उपहार में वितरण हुई हैं । आपने टाइ राजस्थान का भी भाषानुवाद किया था जिसका एक घंड व्यंकटेश्वर प्रेस में छप चुका है और दूसरा उप रहा है। पंडित वलदेवप्रसाद इतनी जल्दी हिंदी लिखते थे कि कभी कभी शिकस्तः उर्दू लिखने वालों को भी इन्होंने हरा दिया । इनको बुद्धि बड़ी तोब थी इसासे इन्होंने थोड़ी सी अवस्था में बहुत कुछ लिख पढ़ लिया था। परिश्रमी तो ये इतने थे कि सवेरे से लेकर संध्या तक काम करते रहने पर फिर भी चित्त न भरता तो गति के दो बजे तक लिखा पढ़ा करते थे। यद्यपि यह समय ऐसा नहीं है कि कोई केवल लेखक होकर जीविका निर्वाह कर सके परंतु आप अपनी लेखनी द्वारा हो हजारों रुपए कमाते थे। आपने निज व्यय से जो पुस्तकें इकट्ठी की थी उनका एक पुस्तकालय भी स्थापित किया था। वह पुस्तकालय इस समय आपके भाई पंडित ज्वाला- प्रसाद जो की रक्षा में है। पंडित बलदेवप्रसाद बड़े दयालु और मिलनसार पुरुष थे। माप छोटे छोटे बालकों से बड़ा स्नेह रखते और घंटी उनके साथ खेलते
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