रिखा। उसके उत्तर में उन्होंने गुप्तजी की कृतज्ञता प्रगट की पार ( १०१) उन्हों दिनों कालाकांकर के राजा रामपालसिंह जी ने इंगलैंड ३ भाकर "हिंदी हिंदोस्थान" पत्र जारी कर दिया था। पंडित मदनमोहन मालवीय उसके सम्पादक थे। वृंदावन में श्री भारतधर्म महामंडल के अधिवेशन में मालवीय जी गए थे और गुप्त जी भी वहां आए थे। पंडित दीनदयालु शर्मा द्वारा दोनों महाशयों का परस्पर गरिचय हुमा । प्रस्तु, जब मालवीय जी हिंदोस्थान का सम्पादन छोड़ने लगे तव इन्होंने गुप्तजी को कालाकांकर बुलाकर सहकारी समादकों में नियत करयाया। राजा साहब स्वयं सम्पादक थे। पंडित प्रतापनारायण मिश्र, पंडित राधारमण चौवे, चौवे गुलाब- चंद, पडित रामलाल मिश्र, बावू शशिभूपण चैटर्जा, पंडित गुरु- दच शुक्ल पौर बावू गोपालराम आदि लेखकों की कमेटी उनको सहायक थी पौर लाला बालमुकुद गुप्त उस कमेटी के सभापति या कुछ दिनों के बाद गुप्तजी कालाकांकर से घर को चले गए। इनके जाते ही उक्त नवरत्न कमेटी तीन तेरह हो गई। उन्हीं दिनों कलकत्ते में हिंदी बंगवासी का जन्म हुआ। जिस समय काशी में भारतधर्म महामंडल का अधिवेशन हुआ तो बंगवासी के मालिक यहाँ पाए थे। गुप्तजी भी घर से पाकर इस अधिवेशन में सम्मि- लित हुए थे। यहां वंगवासी के मालिक से और इनसे परिचय हो गया । उन्हों दिनों हिंदी बंगवासी में "शिक्षित हिन्दू बाला" नाम का एक उपन्यास निकलता था। जब गुप्तजी काशी से लौट कर घर आप तो इन्होंने उक्त उपन्यास की समुचित समालोचना करते हुए बंगवासी सम्पादक बावू अमृत लाल चक्रवर्ती को एक पत्र इन्हें कलक बुलाकर अपना सहकारी नियत किया। यह बात सन् १८९३ ० की है। मुस्त्रिया थे।
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