पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१८२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

का समय लगाया। सन् १८८८० में जब ये अपनी बहिन से मिलने उदयपुर माप तो महामहोपाध्याय कविराज श्यामलदास जी ने इनके गुणों से प्रसन्न होकर इन्हें अपने इतिहास-कार्यालय का मंत्री नियत किया। सन् १८९० ई. में विमोरिया हाल खुलने पर ये यहाँ को म्यूज़ियम लायरो के अध्यक्ष नियत हुए और भय अजमेर में जो नया सर्कारी म्यूज़ियम गुला है उसकी अध्यक्षता के कार्य पर नियत हुप है। सन् १८९३ ई० में इन्होंने हिंदी में एक अपूर्व ग्रंथ लिखा। प्राचीन इतिहास-उद्धार के लिये प्राचीन लिपियों का पढ़ना बड़ा पावश्यक है परंतु इस काम के लिये किसी भाषा में कोई पुस्तक न थी। पंडित जी ने प्राचीन लिपिमाला नाम की पुस्तक लिख कर इस अभाय की पूर्ति की। इस पुस्तक की बड़े बड़े विद्वानों तथा सोसा. यटियों ने असाधारण प्रशंसा को है । सन् १९०२ ई० में इन्होंने कर्नल टाड का जीवन-चरित लिखा और टाड साहब-लिखित राज- स्थान के अनुवाद पर टिप्पणी लिखना प्रारंभ किया। यह दूसरी ग्रंथ छप रहा है और जिन लोगों ने इसके छपे हुए भागों को देखा है वे पंडित जी की विद्वत्ता का अनुभव कर सकते हैं। आपने अब एक ऐतिहासिक ग्रंथमाला नाम की पुस्तकावली छापना प्रारंभ किया है। इसके पहिले भाग में सोलंकियों का इतिहास है। यह ग्रंथ इतिहास का अमूल्य रत्न है । प्राचीन शोध का पंडित जी को बड़ा व्यसन है। वे अपना सारा समय इसके अर्पण करते हैं। प्राचीन स्थानों को देखना, उनका इतिहास जानना, प्राचीन वस्तुमों का संग्रह करना बस इन्होंमें मापका कालक्षेप होता है। प्राचीन सिक्कों का एक बहुमूल्य संग्रह आपने किया है। पंडित जी का उदयपुर राज्य में बड़ा मान था और ब्रिटिश गव- नमेंट ने भी आपके गुणों पर रीझ कर अनेक वेर अपनी गुणग्राहिता का परिचय दिया है। उदयपुर में जितने वाइसराय गप हैं उनसे