और स्वार्थ-शून्य हो निज के हजारों रुपए खर्च कर इसो कार्य में पत्र हिंदोस्थान का समादन इनके हाथ में दिया। इन्होंने हिंदो- स्वान को उन्नति करने में यथासाय परिधम किया और विलक्षण दक्षता के साथ ढाई वर्ष तक उसका सम्पादन किया। यद्यपि माल- चोय जो ने हिंदी में कोई विशेष ग्रंथ नहीं लिखा है परंतु हिंदोस्थान को पुरानी फाइलें देखने से ज्ञात होता है कि ये मातृभाषा हिंदी के कैसे अच्छे लेखक हैं। इनकी प्रोजस्विना और सरल लेख. प्रणली पाठकों के चित्त पर पूरा प्रभाव उत्पन्न करनेवाली है । ढाई वर्ष तक हिंदोस्थान का सम्मादन करने के बाद आपकी च्छिा कानून प्रत्ययन करने को हुई। यह जान कर राजा रामपाल सिंह ने इन्हें अपने यहां से प्रसन्नतापूर्वक रुखसत दी और इनके कानून के अध्ययन में यथासाध्य सहायता दी। तीन वर्ष कानून पढ़ कर इन्होंने सन् १८९१ में हाईकोर्ट की परीक्षा पास की और अगले वर्ष सन् १८९२ में पलपल बी० को उपाधि प्राप्त की। तब से अब तक आप इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत करते हैं और अपने देश तथा देश-भाइयों के हित की चिंतना में तत्पर रहते हुए अपने मनुष्य-जीवन को सफल कर रहे हैं। मालवीय जी हिंदी भाषा के ग्रंथकार नहों पर हिंदी के अच्छे लेखक और सच्चे शुभचिंतक हैं। आप काशी नागरीप्रचारिणी सभा के एक सम्मानित सदस्य हैं । सर एंटनी मेकडानल के समय में जब कि संयुक्त प्रदेश की प्रजा की ओर से प्रांतीय गवर्नमेंट की सेवा में अदालतों में नागरी लिपि का प्रचार करने की प्रार्थना की गई थी उस समय आपने इस कार्य में विशेष उद्योग किया था, वरन यह कहना चाहिए कि इस कार्य में सफलता केवल आपही के परिश्रम का फल है। लाट साहब की सेवा में नागरी मेमोरि- यल का भेजना, नागरी के सच्चे गुणों के कीर्तन में पुस्तक लिखना लग जाना पंडित जी के लिये एक बड़े गौरव की बात है।
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