प्रेरणानुसार दलाली का काम करने लगे। इस काम को इन्हीं कुशलता से किया पर अपनी आय भी अच्छी वढ़ाई, पर वित्त प्रवृत्ति इस पोर न होने से इन्होंने इस काम को शीघ्र ही छोड़ दिया छात्रावस्या में दुर्गाप्रसाद जी बँगला के समाचार पत्र बड़े प्रेम पढ़ा करते थे और उस समय उनके चित्त में यह विचार उठताए कि यदि ऐसे ही पत्र हिंदी में निकलें तो अच्छा हो । सौभाग्यवर उसी समय काशी से कविवचनसुधा नाम का पत्र प्रकाशित होने लगा और ये उसके संवाददाता वने । इसके अनंतर पटने से बिहा बंधु का जन्म हुआ। इसके भी ये सहायक रहे । अब दलालो के काम छोड़ कर ता० १७ मई १८७८ को मापने हिंदी के प्रसिर साप्ताहिक पत्र "भारतमित्र" को प्रकाशित करना प्रारंभ किया परंतु ग्राहकों के समय पर चंदा न देने से आर्थिक त्रुटि के कारण इस पत्र का भार 'भारत मित्र सभा' को दे दिया। इसके कुछ दिनों पीछे स्वर्गीय पंडित सदानंद मिश्र के अनुरोध से इन्होंने “सारसुधानिधि" नाम का एक पत्र निकाला । एक साल चलकर जब यह भी बंद हो गया तव सन् १८८० में केवल अपने बाहुबल के आश्रय पर "उचितवका" पत्र प्रकाशित करना प्रारंभ किया। उचितयका ने हिंदी सृष्टि में पक नया कर्तब कर दिन- डाया। इस पत्र में गूढ़ गजनैतिक विषयों पर पंडित जी के ईसी दिलगी भरे लेय सर्वप्रिय और प्रभाव-जनक होते थे। अंब नरेश महाराज रणवीर सिंह पंडित जी पर विशेष प्रेम रखते थे। उन्होंने जंबू से "जंबू प्रकाश" पत्र चलाने को इच्या से पंडित जी को बुलाया था परंतु उनको प्रस्यस्थता के कारण यह न हो सका। तब ये फिर फलक चले आए पार उचितयताको चलाते रहे। महाराज रणवीर सिंह का स्यगंयासहजाने के कारण पर्तमान जंव नरेश ने इन्हें युलाया पार शिक्षा विभाग के सर्योध
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