पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१२६

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(२३) लाला सीताराम, बी. ए. 1 ला सीताराम जाति के श्रीवास्तय (दूसरे) कायस्थ ला ६ पार इनके यंश के लोग पहिले जौनपुर में रहते थे, पर इनके पिता प्रसिद्ध वाया रघुनायदास शिष्य हो गए थं प्रतएव ये जौनपुर छोड़ प्रयाच्या मा पसे । यही २० जनवरी सन् १८५८ को इनका जन्म हुआ। का विद्यारम्भ वाया रघुनाथदास ने ही कराया था, पर इसके पीछे पक मोलची साहिव उर्दू सारसी पढ़ाने के लिये नियत हुए । सौभाग्य- पर उक अध्यापक कुछ हिंदी भी जानते थे अतएव लाला सीता- राम ने उर्दू के साथ कुछ हिंदी भी पढ़ी पर इनके पिता वैष्णव थे पौर यावा रघुनाथदास के शिष्य थे अतएव उन्हें धर्म-संबंधी भाषा- ग्रंथों से बड़ा अनुराग था। लाला सीताराम बालपन में अपने पिता के ग्रंथों को प्रायः पढ़ा करते । इसीसे उन्हें हिंदी का शान और उससे प्रेम उत्पन्न हो गया । इसके कुछ काल अनंतर इन्होंने अंगरेजी पढ़ना आरम्भ किया और सब परीक्षाएं बड़ी सफलता से पास की । सन् १८७९ में बी. की परीक्षा में इनका नंबर सब से ऊपर रहा। एफ० ए० को परीक्षा में इन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया और वी० ए० की परीक्षा के लिये विज्ञान पढ़ा । पोछे से सन् १८९० में इन्होंने वकालत की परीक्षा भी पास की। पहिले पहिल ये अवध अखबार के सम्पादक हुए मार दो हो महीने पीछे उसे छोड़ कर वनारस कालेज के स्कूल-विभाग में तीसरे अध्यापक हुए । (अगस्त १८७९ ई०) तीन ही महीने पीछे ये !