हो गए। परिणम यदुमा किरा जप्त हो गया। (२२) ठाकुर जगमोहनसिंह । कुर जगमोहनसिंह के पूर्वजों का संबंध जयपुर गज- ठा घराने से था। ये लोग इक्ष्याकुवंशीय जोगायत कच्चाहे राजपूत हैं। आमेर के राजा कुंतल देव के मझले भाई मानलसिंह के पांच पुत्र हुए । इनके पुत्र बालोजो गाजी के थाण में रहते थे । वालोजी के पुत्र खंडेराय के पाठ पुत्र हुए जिनमें ज्येष्ठ पुत्र भीमसिंह आपस की अनबन के कारण घर छोड़ पन्ना में आ वसे । इनके पुत्र वेशोसिंह काल पाकर पना के राजमंत्री नियत हुए । एक युद्ध में ये मारं गए । तय पाना- नरेश ने इनके पुत्र गजसिंह को "राजधरवहादुर" की पदयो दो और मेहर का इलाका पुरस्कार में रहने के लिये दिया । राज- पाज में फंसे रहने के कारण इन्होंने अपने मंझले भाई ठाकुर न सिंह को महर रियासत का सघ प्रबंध सौंप दिया। बड़े भाई के मरने पर ठाकुर दुर्जनसिंह रियासत के मालिक हुए। इनके दो पुत्र थे पर विष्णुसिंह मार दूसरे प्रयागदाससिंह । भाइयों में प्रकार होने पर राज्य में पट्यारा हो गया। विष्णुसिंह मेहर में रहे और मयागदास सिंह ने दक्षिण भाग में विजयराघय गढ़ यसा कर से अपनी राजधानी नियत किया । इनके पुत्र टाकुर सरयूसिंह गो हुए । जब पिता मरे तो इनको मघमा ५ पर्ष की थी। प्रतपय गया प्रसंध गयनमेंट ने अपने हाथ में लेलिया। इसके १२ पर्ष परे सन् ५७ का घलया हुआ। इस समय ठाकुर सरसिंह १७ वर्ष थे। कुछ लोगों के बहकाने में पाफर ये प्रिटिश गवर्नमेंट के 10
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