पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१२०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हुए । सन् १८८७ में छुट्टी से लौटाने पर पाप गया जिले के कले- कृर और मजिस्ट्रेट नियत हुए। यहां भी आपने गया जिले का संक्षिप्त विवरण लिख डाला। इसी समय ग्रापने हर्नली साहिब के साथ विहारी भाषा का कोश बनाना प्रारंभ किया था पंरतु यह पूरा न हो सका। आपने पियदसी अर्थात् अशोक के शिलालेखों परएक निबंध भी लिखा था। सन् १८९२ में आपने आप हो अपनी बदली गया 'इबड़े को करा ली और वहां सन् १८९६ तकरहे । वहां पर मापने विहारी सतसई पद्मावती, भापा-भूपण और तुलसीकृत रामायण आदि हिंदीसाहित्य की पुस्तकों का सम्पादन या भाषानुवाद किया और पंडित बालमुकुंद कादमीरी की सहायता से सरकार के लिये भारत की भाषामों पर एक निबंध लिखा। सन् १८९६ में आप विहार में अफ़ीमविभाग के एजेंट नियत हुए और सन् १८९८ ई० में भाषा संबंधी जाँच के काम पर नियत होकर शिमला गए और कुछ काल पीछे वहां से सोधे विलायत को चले गए। तब से अब तक आप यहीं हैं। सिविल सर्विस से आपने इस्तीफा दे दिया है पर अभी पाप भाषा संबंधी खोज का काम कर रहे हैं। डाकुर साहेब बड़े ही सज्जन और सच्चरित्र पुरुष हैं। आपको विद्वचा पर रोझ कर अनेक सभामों ने आपको सम्मानित किया है और भारत गवर्नमेंट ने भी सी० आई० ई० की पदयी से भूषित किया है । आपका हिंदी से बड़ा प्रेम है और उसकी सहा यता में प्राप सदा तत्पर रहते हैं।