पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/७५

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[ ४२ ] चंद्र-स० ५७ के लगभग वर्तमान शायद ये | चंद्रप्रकाश रसिक अनन्य शृङ्गार-चंद्र कृन, लि० वही चद्र है जो नवाब मुहम्मदयाँ ( पठान का० स० १६४५, वि० सीताराम का विद्यार। सुलतान) के प्राचिन थे और जिन्होंने बिहारी दे० (ज-४२) सतसई पर टीका लिखी थी। चद्रलाल-उप० चंदहित, राधा वल्लभी संप्रदाय पिंगल (च-२०) के गांस्वामी और वृदावन निघासी थे, सं० चंद-यह गमानुज सप्रादय के वैष्णव जान पडते १८२४-२८५४ तक के लगभग वर्तमान, नम्यर हैं, इनके विषय में और कुछ भी बात नहीं। (ज-४३) और (ज-३६) चंतहित तथा चंदलाल चद्रप्रकाश रसिफ अनन्य सिंगार दे० (ज-४२) एक ही है, पृथक् मानना भूल है। चंद्र कवि-स० १४२८ के लगभग वर्तमान; जाति म्पसुधानिधि को टीका दे० (ज-३६५) के चौथे सनाढ्य ब्राह्मण हीरानद के पुत्र और पंदावन प्रकाशमाला दे० (ज-४३ ए) रामराय के पौत्र थे। एस्कंठा माधुरी दे० (ज-४३-धी) चद्र प्रकाश दे० (छ-१४५) ('भागवतसार पचीसी ( भागवतसार भाषा) चंद्रकवि-स० १६०४ के लगभग वर्तमान, जयपुर टे० (ज-४३ सी) नरेश महाराज रामसिंह सवाई के आश्रित । दापन महिमा दे० (ज-४३ डी) भेद प्रकाश दे० (छ-१४४) भावना सुवोधनी दे० (ज-४३ ई) चंद्रधन (गोसाई)- -उप० चंद्रलाल; यह जयपुर भमिलाप पचीसी दे० (ज-४३ एफ) महाराज के आथित थे, उनके विषय में और (ज-३६ बी) कुछ भी ज्ञात नहीं। समय पचीसी दे० (ज-४३ जी) भागवतसार मापा ( भागवत पचीसी) दे० (ज-३६ डी) (क-६६) समय प्रम दे० (ज-४३ एच) [७ यह ग्रंथ चंद्रघन का निर्माण किया हुआ म्फुट कविता दे० (ज-४३ माई) नहीं है बल्कि चद्रलाल का है । दे० (ज- ४३ सी) नाम में भूल है।] । मावना पचीसी दे० ( ज-४३ जे) (ज-३६ सी) चंद्रदास-इनके विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं; संभव है कि ये नम्बर (च-२०) वाले हो चंद्र शेखर-सं० १६०२ के लगभग वर्तमान, चंद्र हो। पटियालानरेश महाराज नरेद्रसिंह के आश्रित । नेह तरंग दे० (ज-३८ए) हम्मीरहठ दे० (घ-१००) रामायग्य भाषा दे० (ज-३८ धी) हरिभक्त विलास दे० (घ-०१) चंद्रप्रकाश-चद्रकवि कृत, नि० का० स० १८२८, विवेक विलास दे० (घ-१०२) लि. का० सं० १८८६, वि० ज्योतिष। दे० रसिक विनोद दे० (घ-१०३) (५-१४५) चंद्रसेन–मिश्र ब्राह्मणं, इन्होंने संस्कृत के माधव