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गथे, कितनी ही कहानियाँ सुनाई गई? सर्वसाधारण ने सुना, गाया और देखा!

उन्माद और प्यार!

इन दोनों के बिना जीवन निराशा से परिपूर्ण है। ऐसे युवक जो सदैव अपने यौवन काल में प्यार के भूखे ही रहे हैं; उन्हें अभागे के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है?

यहाँ तक तो सभी का विश्वास है, कि प्यार होना चाहिए अवश्य ही; लेकिन प्रश्न उठता है, कि वह किससे होना चाहिए? कैसा होना चाहिए? किस प्रकार आरम्भ होना चाहिए? और उसका स्वरूप क्या है?

लेखक ने इस पुस्तक में इन्ही गूढ़ प्रश्नों की अप्रत्यक्ष रूप में विवेचना की है। उनका नायक सैय्यद ऐसा ही एक अभागा बीस वर्ष का नवयुवक है, जिसका हृदय अभी तक प्यार से सूना है; लेकिन पड़ोसी मित्रों की प्रेम कहानियाँ उससे छिपी न थी, उसका प्रत्येक साथी किसी न किसी लड़की के प्यार का शिकार हुआ था और आश्चर्य यह है, कि इनका प्यार हो गया―पहली नज़र मिलते ही― एकदम; किन्तु सैय्यद इन सबको झूठा समझता है। उसके दृष्टिकोण में एक नज़र का प्यार घुने हुए चने के बराबर है, शायद उसमें स्थायित्व न हो; परन्तु चारा भी क्या है? जब ये ऐसी कहानियाँँ पढ़ेगे, चित्र देखेंगे, तो क्यों न इन देखी हुई बातों को अपने जीवन में उतारेगे; किन्तु सैय्यद ऐसी झूठी रूमानी दुनिया में नहीं जाना चाहता, वह तो अपने भावों की दुनिया के अनुसार ही लड़की से प्यार करेगा, भले ही असफल हो जाए। कितना वास्तविक चित्रण है और है तीखा व्यंग उन थोथे प्यारों पर, जो चलते-फिरते सड़कों पर हो जाते हैं, जो इस रूमानी दुनिया के फरेब में आकर जीवन को दूभर बना लेते

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हवा के घोड़ें