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बहुत नहीं : थोड़ा

प्यार और जीवन!

जीवन और प्यार!

ये दोनों रथ के पहिये के समान मानवी ढांचे के साथ पुरातन से ही चले आ रहे हैं। दोनों की चाल-ढाल, क्रम सब एक सा है। किसकी महत्ता अधिक है? यह कोई न समझ सका है और न समझ सकेगा। दुनिया के हर कोने में प्यार-प्यार की पुकार हो रही है; पर आज तक कोई भी इस प्यार का लक्षण निर्धारित नहीं कर सका। सुना जाता है, कि यौवन के सागर में प्यार ही पतवार बनकर जीवन की नौका को पार लगाता है, कैसे और क्यों? यह एक पहेली है और पहेली ही बनी रहेगी। मानव-मानवी का पारस्परिक आकर्षण हो इस प्यार के महल की नींव रही है और सदा ही यह समाज के थपेड़ों का सामना करता हुआ खड़ा रहेगा। इन महलों में बैठकर कितने ही पोथे रचे

हवा के घोड़े
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