हुए है। तुम पूरी हो; किन्तु मुझे अधूरा ही समय ने छोड़ दिया---ऐसी जगह पर छोड़ दिया कि मेरे ख्याल कभी भी पूरे न हों।"
फरिया जिसके कानों में अभी तक उसकी हरारत भिनभिना रही थी। सैय्यद की समझने वाली बातों का अर्थ वह न समझ सकी, वह बोली---"जाने तुम क्या कह रहे हो?"
सैय्यद पलंग पर बैठ गया। जेब से सिग्रेट निकाल उसने फरिया की ओर देखा, जिसके उत्सर्गमय प्यार की सीमा से वह अभी-अभी निकला था। इस विचार से कि अपनी और फरिया की कुशल भावनाओं को उसने बडे ही गन्दे ढंग से अधूरा छोड़ दिया था। सैय्यद को मानो ठेस लगी, यानी उसने फरिया से कहा---"तुम मेरी उलझी बातें न समझ सकोगी। इसलिए कि तुम्हारे जीवन के तार सीधे हैं; किन्तु यहाँ मेरे दिमाग़ में उलझन के सिवाय और कुछ है ही नहीं। मैंने एक बार पहले कहा था कि मैं तुम्हारे लायक नहीं, एक बार फिर कहता हूँ, फरिया! मैं तुम्हारे लायक नहीं।"
फरिया ने चिढ़ कर पूछा---"क्यो?"
"बताता हूँ; किन्तु तुम पहले मुझ से यह पूछो, सैय्यद! क्या तुम अपनी औरत बनाकर मुझे घर ले जा सकते हो?"
फरिया ने बड़ी लापरवाही से कहा---"लेकिन मैंने कब कहा है कि मुझसे शादी कर लो।"
सैय्यद ने सिग्रेट जलाया और सोच कर कहा--"तुमने मुझसे कहा नहीं, मगर मैंने हृदय में कई बार इस सवाल को झगड़ते हुए देखा
और मुझे चोट खानी पड़ी कि सैय्यद तुम में इतनी क्षमता नहीं; जब मेरे सवालों का यह जवाब मिला तो फिर तुम ही बताओ कि मैं तुम्हारे लायक हूँ?"