पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/८७

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? क्या है मुमित ? जरा तो सोचो, अघ-दास्य हो क्या इक बन्धन अरे, रूस में भी तो अब तक उठता हे मानव का संस्कृति की पूर्णता कहाँ है? क्या है चरम सभ्यता नर की? भौतिक सम्पनता मान गोभा नहीं मनुज के घर की, मनोविकार - दमन ही केवल मापदण्ड है चिर - सस्कृति का, काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, भय शाश्वत रिपुदल है ससृति का, जब तक अवश रहेगे ये रिपु तब तक कहा नवल युग जग में? वन्धन ही बन्धन उलझेगे इन मानवता के पग-पग में। तपना, निशिवासर मदनुष्ठानी के लिए निरन्तर तन्मय सपना, वर को सत्य सन्ध करने के लिए बम-घूनी मे यही परम है यस यही चर्म श्रेयस्कर, अपने यन्धन से विमोक्ष निज, इसी तरह पा सप्ताहै नर, हम रिपाया जनम के पुस्पाय सनातन, १४