पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/७९

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कोई उससे नर कहता है। हिंसावृत्ति बुरी है, भाई, तो वह वाह देता है तुम हो प्रगति-विरोवो, जन-दुखदाई। 7 तुम दोओगे हिंसा में विश्वास निरन्तर- यही प्रगति का है क्या लक्षण प्रगतिशील हिंसा के बल वया कर पायेंगे जन-गण-रक्षण? तलवारें मदि तो तलवारें ही उपजेंगी, सवनादा जग का अयुत युगो तक वे दुख देगी, है लोकोथित पुरानी यद्यपि फिर भी है सत्यता-विमण्डित, तलवार चलायेंगे चे सलवारों से होगे खण्डित । कर देंगी ये कहते है 'हम हिंसा के लिए नहीं हिंसा के हामी, हम तो जन-गण उद्धारण के हेतु बने हिंसक निष्कामी। आज देख लो, हम हिंसा के वल लाये है नवयुग जग में, आज प्रगति क्रीडा परती है पौर रसियो रे टग-टग मे, ५६ हम विषपापी जनम