पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६६८

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डली दुपहरी, दिनकर इवा, संगी सोश मुसकाने, पर झाडाते, अलसाते, उल्लू जगे सयाने, जीवन के मराल मरघट की उन्मन सन्ध्या-घेला,- चेतन के दिन को ऊषा वन आयो हिय हुलसाने। चिर निद्रा तो नग है, वह तो है जागरण व्यवस्था, बैंसी निशा जर कि है दिन मणि चेतनता कूटस्था, जिसको चिर निद्रा कह-बहकर जन गण अबुलाते है, अरे वहीं तो है जागृति की अद्भुत, गवल अवस्था । ननी जेल १९ अक्टूबर १९८१ प्रश्नोत्तर 1 ल रणियां, रच भौतिक शक्ति, कुछ रासायनिकता, जब स-वित हुई तब वह बन गयो जीवन-क्षणिस्ता। चेतना का भाव है जो, जो अह का भाव है यह,- राग, रति, म - रीति - युति का जो समचा ताव है यह, वह नही कुछ और, वह है शुद्ध भौतिक रास केबल, चेतना तो है रसायन - शक्ति - हेत्वाभात फेवल । ययो वृथा जड और चेतन के भुलावे म पढे जग क्यो वृथा चिर चेतना की टोह मे हो भ्रमित जन - पर दम विषपायी जनम के