देख रहे हम जड - चेतन का यह अबलम्ब परस्पर इस विधि जीवन-गरण-समन्वय होता यहाँ निरन्तर, बिना एक के अन्य असम्भव, या आवद्ध चगवर, तर नया परिदेवना ? भोक नया ? क्या विपाद ? पणा भय है ? विकसित चैतन भी मृण्मय है। ? थवण, चक्षु, रसना, स्पान औ' प्राण, सभी, है मृण्मय नाना विधि के पटित मृत्तिका भाजन भी है गृण्मय, इनमें डात्माराम रवैया विचर रहा है निभय, अयवा मृत्यु कुम्भ के भीतर जीवन का सत्रय है, रे यह चेतन भी मृण्मय है। 7 यदि जग की लोला है केवल जीवन - मरण - समन्वय, यदि विकास है जड - चेतन का केवल अन्योयाश्रय, तो फिर क्यो न विलोके हम सब एक रूम क्षय - अक्षय क्या न कहे कि मरण भी तो यह जीवन का जय-जय है चेतन भी तो यह मृण्मय है। २ जड के बिना कहा चल पायी चेतन की परिपाटी' निज विकास हित समुद वरण को उसने मृण्मय - माटो, तब पथर अचरज कि मुचिर जीवन चले मौत की घाटी? सिरजन के विकास क्रग मे, अन्तनिहित प्रलय है, रे, यह नेतन भी मृण्मय है। नैना जेल २ अगरन १९४१ हम विषपायी जगम ये ७९
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