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क्या जानें क्या अभिशाप लगा जीवन में यह कैसा पाप अमाम जगा जीवन में? कर सका न में कुछ जगह रिगी के मन में, बारी-बारी सब ने मुशका ठुकगया मेरे अम्बर में निपट अंधेरा छाया 1 3 कैसे समयूँ कुछ मेरा दोष नही है ? पर, यह गमसू तर भी तो तोप नहीं है। दोषी पर होता इतना रोप कही है। इतना कि जाय वह यो सन्तत बिलगाया। मेरे अधर में निपट अंधेग आया। यदि मै अपने को अपराधी भी पाऊँ,- यदि मै निज सिर पर ही सब दोष उठाऊँ- तो भी मे अपना मन केये समाऊँ? अपराधी कभी न क्या माजग-गन भाया मेरे अम्बर में निपट वेरा छाया ? 1 डिस्ट्रिक्ट जेन, उन्नाव ८ अप्रैल १९४१ हम ग्षिपापा सनमक ५१३