पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/६०८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रोको, है, रोको रोको, है, रोको, निज क्रोध-अनल एक याम, दे दो कुछ देर, नैंक, अपने मन को विराम । तुम तो हो नीलकण्ठ, विकट हलाहल-धारी, तब क्या है यह वृश्चिक-दशावलि बेचारी? दुजन की बान नौच, यह उसकी लाचारी। इससे तुम क्यो विचलित होते हो, हे अकाम? रोको, हे, रोको, निज मोध-अनल एक याम ! उन्नत होकर धनते मनोवेग प्रबल शक्ति, सयम हो से खिलती यि की रागानुरक्ति, तुम्ह नहीं देती है शोभा यह वेप भक्ति, तुमने तो रखा है अपना चिर धीर नाम, रोको, है, रोको, निज क्रोध-अनल एक याम । दीय कारागार, मरेती ११माच १९४३ छग विषयावी जनम के ७२