ये आये। ये आये। ये अपये, ये आये, भम्मक ये आये, ये आये। लाज गरजने, धयर करते थे नभ में मंडराये, भस्मक ये आमै, ये आये। अरे, कौन कहता है इनको वायुयान नभचारी ? किसने कहा हुई है मानव-क्रीडा मगन-विहारी? हरण-मरण के पख लगाये भीषण मृत्यु पधारी । आज, जगत् में त्राहि-त्राहि के कारण, भीत स्वर छाये । भस्मक ये आये, ये माये ॥ पवन-यान हैं अन्तरिक्ष मे, है शतनिया नीचे, नर क्या करे ? श्रवण निज मूंदे ? या निज लोचन भीचे? इस प्रज्वलित जनोद्यम-रथ को कैसे कोई खीचे? सर्वनाश ने आज चतुर्दिक् अगारे वरसाये, भस्मक ये आये, ये आये ॥ क्या मानव की प्रगति-कथा की इति का अब यह अच है श्या उसके लीलान्त-काल का यह उपहास अकथ है। लगता हिम हारा-सा मानव, उसका तन सस्लप है। उसने अपने हाथो अपनी इति के साज सजाये। भम्मक ये आये, ये आये। पेद्रीय कारागार, बरेली १७ जुलाई १९४३ ? ५३ हम विषपायी जनमक ६५
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