पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५१८

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जन - गण हम काल - मेष बन मैडराये, हम अशनि - कुलिश वन-बन गरजे, सुन • सुन घनघोर निनाद भीम अत्याचारी लरजे, अब आज, निराशा - तिमिर देख, लरजेंगे नया हम क्रान्तिकार' हम विप्लव - रण-चण्डिका - जनक, हम विद्रोही, हम दुनिवार । सोचो तो कितना अहोभाग्य,- आ पडा हमी पर क्रान्ति - भार । इस अटल ऐतिहासिकता पर, हम क्यो न आज हो निसार ? यह क्रास्ति-काल, सक्राति - काल, यह सन्धि - काल युग-डियो का, हार हमी करेंगे गठ बन्धन, युग - जजोरो को कडियो का। हम नयो उदारा हो क्यो निराश ? जब सम्मुख है पुरुषार्थ - सार। हम विप्लव रण चण्डिका-जनक, हम विद्रोही, हम दुनिबार । से निकले है गहने नव भद्र, सूर्य, नव भव अम्बर, नव वसुन्धरा, नच जन समाज नव राज-काज, नव काल, प्रहर । हम विषपापी जनमक