पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/५१२

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हमने नव सृजन-प्रेरणा से छिटकाये तारे अम्बर में, हम ही विनाश भर आये हैं इस निखिल विदय-आडम्मर मे, हम सृष्टा हैं, प्रलयकर हम, हम सत्तत क्रान्ति को प्रपर धार- हम विप्लव-रण-चण्डिका-जनक, हम विद्रोही, हम दुनिबार । हमने अपने मन में की हाँ।' ओं' प्रकृति नर्तको नाच उठी हमने अपने मन मे को 'ना' औ' महा प्रलय की आच उठी। जग डग-मप-टग-मग हाता है अपने इन भृकुटि विलासो से, मिरजन, विनाश, होने लगते दायीन्यायी श्वासो से, हम चिर विजयी, कर सका कौन हठ ठान हमारा प्रतीकार हम विप्लब-रण चण्डिका-जनफ, हम विद्रोही, हम दुनिवार । अपने शोणित से ऊपा को हम दे आये सुकुम - सुहाग, आदशों के उद्दीपन से हमने रवि को दो अगित आग, हम विपायी जनम के YES