पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४८३

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नानगे? मत जा गोपुल छोट, नजर यमुना पार, अरे, ओ मोहन, तुझ बिन कौन सुरास रचेगा, फान करेगा फिर गो दोहन ? मुरली बीन बजादेगा फिर? ग्वाल-वाल कैमे नर नागर, लैरे बिन हम सब नर-कछमी कैसे तु जीयन-वालिन्दी मत तर, रक जा, रच हमारी सुन ले, कुछ दिन और इसो गोकुल की गलियो की ककडियां चुन ले। डिस्ट्रिक्ट, ल अनाव २ मा १९४३, अब गति काहेंगे। मस्त पहो मानव, मस्त रहो जोवन म, तूप मह इसने व्यस्त रहो, वर्मठ रही, किन्तु कर दो निज कम - सग मा यस्त, अही रही सदा ऐसी मस्ती म कि मिट जाये मन या खटपा, पुछ ऐसे उठो कि हो जाप मा चिन्ताएँ अस्त, अहो। ऐसी मस्ती नहीं मि जिसमे मदहोशो - सी आ जाये, यह मस्ती भी नहीं निहिम में अलग शिपिटता छा जाये, ऐसी नहीं लि जिगस हो यह जीवन मठप - प निरा, पर, ऐको जिगामि हृदय में समता , बाल समा जाय? vuu s fra