पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४४८

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बरण करोगे विजय बनोगे जग में क्या तुम धरणीधर , तो सोखो कैसे देते है जन शोणित अजलि - भर - भर विजय चरण करने निकले हो, पग घरते हो यूं डर - डर ? कायर | समक्षा या कि चले हो तुम अपनी साला के घर खबरदार । पोछे मत देखो, लानत है गर तुम शिक्षको, क्या है मोल तुच्छ जीवन का, अरे खपा दो तुम निज को । 2 विजय नसोचोकिबह मिलेगी, कब, किस दिन, किरा घडी, भरे, विजय नही कवाडी मिले जो यो ही पब में पड़ी अरे? पहले कुछ चुक्ते तो कर दो साँचे - चोखे दाम अरे, भोरु चाहते हैं कि मिले वह विजय मिना कुछ भेंट धरे, तुम हो अग्निकुमार अरे ओ युवक धुनी, ओ मतवाले, इस स्वातन्त्र्य-चण्डिका को दो भर निज शोणित के प्याले । जब जग विचलित होता दीखे, जब सव छोडे संग अहो, जब दुनिया - दारो की होवे धीमी हृदय - उमग अही, जब कि पडे जय-जय को ध्वनि का कुछ-कुछ फोका रंग अहो, तय तुम, अरे मुवक, मत डोलो, पथ पर डटै अभग रहो, निरुत्साह फी, तिरस्कार की यदि तुमको भावना मिले, तो उसको, ह अटल हिमाचल, सह जाओ तुम विना हिले। तुमको भारना है पुरुषों के सर पापो का प्रक्षालन, तुम्हे तोढना है सदियों को विकट शृखला ना बन्धन, है बलि-वेदी, सखे, प्रज्वरित माग रही ईधन क्षण-दाण, आमो मुवका, लगा दो तो तुम अपने योयन का धन, भस्मसान हो जाने दो ये प्रल उमगे जीवन को, अरे सुलगने दो बलि-वेदी, चढने दो पलि यौवन पी। इम रिपपाची शनमक "