पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४३०

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घडो-पडी माह से निकलती शिपस्ता दिल को कथा पुगनी, हुजूर, रह-रहों कह रहा है- नमन का पानी अपच कहानी। फटे-से पुरते मे इस फटा-शा- छुपाये कागज बडे जतन से व' कह रहा है कि इसम क्या है,- प' जाके पूछो उन्ही के मन में । तुम्हारे आगे वो माली बोतस्- हिला-हिलाकर यूँ यह रहा है 'जरा इधर भी गरीर परवर, क्जूिरु मधया क्यूँ बह रहा है । होगर इजाजततो दोनो हाथो रो- पोडे बोतल यो यह इसी दम, पिला दो भर-भरके चुल्लू उसको- मिटा दो हस्ती का यह विकट भ्रम । डिस्ट्रिट जेल, गाजीपुर १ जनवरी १९६१ चिन्ता आज निशा के सधन तिमिर म उठ आयो हिय हूक, सुपमे, अन्तर मे मा पेठा स्मृति का वाण अचूक, ट्रक-टूक हो गया हृदय, सखि, नयन हुए जर चार, लोहित-सा हो गया आज उर, अन्तर का व्यापार, धौन सुने फरता है हा 'हा। मम हिय का अनुराग, नुपके, कान लगाकर सुनता मेरा फूटा भाग । हम वियपाथी जनमक ५१ ."