पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/४२९

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प्यासा पि पिये गानता नही दह, बिगड़ गयो है युउऐगी आपत, वहाँ के गेजे, यहाँ की पूजा ? छुटी परितम, मिटी इरादत । है व्यान उसी तो मौर ही कुछ, धरम-गरम रो उमे न राहत, यो छोड बैठा है सारे झाड, हुई है यर्षी य' जब से आफत । न बोलता-नाता है यह पुछ भी जो बोला तो अपनी बहता, अजब सिडी से पडा है पाला, वो अपनी चुन ही मे मस्त रहता। दबाये खाली वगल मे वोतल, संभाले टूटा-सा एक प्याला, वो पीने वालो मे नाम लिखवाने आन पहुंचा, हुजूरेबाला । यहकहरहा है कि नाम लिख छो- समझरे अपनी कलम चलाना, बडी अजब खोपड़ी का है वह, नहीं बताता पता ठिकाना। उधर-उधर तैरती है आखें- य' सुख डोरे पड़े हुए है, मुरूर छाया है लोचनी मे,- तुम्हारे दर पे अड़े हुए है। हम विपपायी जनम के Voo