पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३९८

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वेणी अलो, बाँध लो कसकर, ललित कुसुम Dथो हँस हँस कर, देखो इधर नेन में रस भर, छुममो विश्व विजय की बाल-जरा मुलझा लो उलझे बाल । दाँवो चोटी बडी चुभीली अति अनियारी, बडो नुकीली, लगन, देख हो जाय, चुटीलो, भरे वेदना से हिय-याल - जरा सुलझा लो उलझे वाल ! तन्मय-सी मत देखो दयण,- कर दो कही न आत्म समर्पण, है ऐसा केशो का कर्पण, मानो सिखचन, भोली बाल, जरा सुलझा लो उलझे बाल । चिन लिखी सी मस्मितनगी सुम-- केश न देखो, यिस्मित-सी तुम, मन मोती होवे न मही गुम- है अति सधन,सुमुखि,कच-जाल, जरा मुलझा लो उलझे गाल। एक एका बुन्सल से, रानी,- बैंधी हुई हिय लाग सयानी, अब गूंथो वेणी धारयाणी, आया है यह योवन - काय,-जरा सुलझा लो उलझे बाल । हिस्ट्रिक्ट जेल, गाजीपुर २० जनवरी, १९३१ ६म विषपायी जगम के ३६१