पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३८६

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है वसूर किसका कि जवानी निर वियोग की रात हुई ? किसका दोष कि जीयग की पड़ ऋतुएँ निर बरसात हुई ? दोष रिसो का नहीं हुदय अभिलापा हुई विरानी, री, जन से सुरत सँगारगे, तब से करता हिय मनगानी, री, जाने दो, मत मुनो, व्यथा है मेरो बहुत पुरानी, री, सदा रहो, तुम नब 'नवीन' के हिय मे ओ ठकुरानी री। गाडगर जगवरी १९३१ किमिदम् जीवन से दोपहरी में हो आज साय हो गयी, सखे, आशा की किरणें आषा मे निक्षा आज सो गयी, सखे, गल-गल हिय का उपल यह चला बूंद-बूंद टपकी ज्वाला, सकल विधान उलटने को यह क्रान्ति आ गयी विकराला छलनी-उलनी हृदय हो रहा, मन कम थचन हताश हुए, जीवन-भर के विमल मनोरय गतआश हुआ धी गपेश कुटीर, कानपुर ७ अर्बल १९३१ हंग पिपपाय! जनम र