पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३५८

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अली यहाँ भी भरकर भाया यह मधुपति अपना तूणीर, , कारागृह म भी आ पहुंचा, यह कामी वरात समोर। उग आयी हहर-हहर झर सिहर मिहरकर, काप द्रुम वल्लरिया, सर-सर खर-खर ममर कर, नौरस पत्रावलिया झरिया, अजर - अमर - सी नयी पत्तिया, हरिया हरिया, पर जग की आँखो मे करको, नन जीवन की कावरिया, दिग् - दिगन्त में लहर रहा है, जगपति का बासन्ती चोर, आ पहुँचा, वसन्त कारागृह में भी यह ऊधमी समीर । विटप अ-गटी सैन दे रहे, कुला-डुला अपनी बहियाँ, पुनरुज्जीवन और माग की, प्रकटी यहा धूप - छहिया महा काल बरसाता जाता, उधर मरण - रस की फुझ्या, इधर चुभ रही है जगती के- हिय में जीवन की सुइया, हम पिपायो अनमक २३३