पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३३८

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? सहसा क्यो हो रहा यहाँ यह विप्लर-अत्याचार मेरे अरमानो के महल हो रहे क्यो मिस्मार? आज निराशी निमम-मा हो गया अह । यह दीन, निपट उदासी मी आतुरता ठायो यहा मलीन, उठ-उठ कार गिर-पिर पडता है यह हिवरा तल्लीन । मुलस रहा है तप्त वालुका मे मेरा मन-मौन सूखो नदिया, एखी अखिया, दुखिया यह रस हीन, महमा क्या हो गया तुझे यह, ऐरे निकुर 'नवीन' । वसन्त वहार आज, सखि, नवल वरात्त-वहार कर रही मदिर - भाव - मचार। हम - से मस्ताने नयीन है सोपे करना प्यार, अब तो उलट-पलट जायेगा जग आचार विचार, आज, सवि, नवल वसन्त बहार कर रही मदिर-भाव-मचार। सदा वमन्त हमारे हिम में पलको में मधु-भार, नयनो मे है स्वण मिलन नी सुरखी और खुमार आज, राखि, नवल यसन्त बहार कर रहो मदिर-भाव सवार । हम रिवपाथी जनम क ३१२ RP