पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२९९

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? निम्सायना तुम्हारी दासी, बाधाएँ भरपूर, इस पर यह न पता कि कहाँ हो तुम हो कितनी दूर नाग गांव सब भूल गयी हूँ मैं वीरानो नार, येवल रूप - छटा है आँखो मे, हिय मे, इस बार सिरनामा लिखया दो आ के, ज़रा हाथ लो ग्राम, शरा यता तो, आ परदेसी, अपना मृदु उपनाम । ! उन्माद। ओ एक ठेस, ओ एक याद । ओ तुम मेरे हृदयामाद । आशाओ के तुम चूर-चूर, तुम मस्तक के पुंछते सिंदूर । तुम हृदय दहन को ज्वाल क्रूर, थिर चित्तवृत्ति से दूर - दूर, तुम गहन सहन के दुसहस्वाद, भो तुम मेरे हृश्यो माद । तुम अरमानो के क्षार-क्षार, तुम विकल मनोरथ की पुकार, चिताभी के तुम कठिन भार, उहिरन चित्त के तुम विवार, तुग सर्वनाश ये चिर - प्रसाद, ओ तुम मेरे हृदयोन्माद' तुम सरमरण की धूम्ररेख विगारणो के तुम गत विवेत, गम्म प्रेरित हृदयानुलेख, तुम गत गायन का विगत टेष, तुम युद्धि - यभयो पै प्रमाद, भो तुम मेरे हृदयो गाद' 3 २०४ हम विपपामा जनम +