पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२९३

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सूसा-रूखा घडा बिचारा- ऐंठी हुई रज्जु यह दुर्घल- आस लगाये बहुत समय से, ये दोनो अकुलाते पल-पल । मजु घाट पर, तुम शिव-सुन्दर, नव रस जीवन टुटा रहे हो, बडे-बडे विरयात कविगणो- की भीडो को जुटा रहे हो । मुझको भी घट भर लेने दो, इस पथ पे प्रभु बढ आने दो, एक बार अपने पनघट पे- चढ आने दो, चढ आने दो। 7 जाहवी के प्रति ! गगे, क्यो उमडी जाती हो? निशिदिन किरा अश्नुत गायन की कौन कडी गाती हो इस नैराश्य दीप के झिल मिल प्रकाश में भाज, सुरशी है जीवन प्रहेलिका तुम क्यो उरझाती हो? 7 आज निराशा वरसी अबुर हुआ पल्लवित खूब, तुम माशा की लय से उसको यो मुरझा जाती हो किस प्रसग में किस दिनात केपिस क्षण में होशून्म, किन हायों ने तुम्ह लिया ? तुम प्रथम नेह-पाती हो? २१८ कस विषयमा जनमक