पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२४७

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मेरी पाटी काठ की छोटी, प्रश्न अनेका, जगत् निरुत्तर कै गयो, मिल्यो न उत्तर एक । रात अँधेरे पाख की, दीपक - हीन कुटीर, ऐसे कुसमय मे उठी विफल ज्ञान की पीर । कहा करी ? यह वेदना समुझि परे नहि नैंक, तकि - तकि के कोउ दे रह्यो सशय-बाण भनेक । अहो शान्ति जल - बार, हे सरवर संशय - हीन, तडपि रह्यो है कूल पै यह 'नवीन' मन मोन । डिस्ट्रिक्ट जेल, गाजीपुर २० फरवरी १९२१ घाव बहा करा? यह वेदना, समुशि परं नहिं नैक तपि-तकि कोउ दे रह्यो सशय-याण अनेक, सशय वाण अनेक हिये में सकि रहे ये, धाव गहर-गम्भीर और के टसयि रहे ये, भरि-भरि आवत है कोमल क्षत-विधात छाती, द-द यहि चरी सिधोसो मचित थाती, पहल परान नो मरहम यण म यहाँ भरी मैं ? हैं. ये गहरे पार, बतावह यहा परों में fefter जैन गाडीपुर य१६१ १२२ हम दिपाया नमक