पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२४३

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इन नेना-भौरान यो बाधि लाज की डोर, राजनि, उडाबह मत इत, नरहु कृपा को कोर? ये लोचन-भौरा भये बड़े सुरस के चोर, पलक सम्पुटी म इनहि राजी, करी निहोर। उठो पलक को यवनिका हौले-हौले आज, किधी शान बंगग्य यो टूटयो सवल समाज । इन थोरे से दिनन मो अरी बावरी वीर, आजि गयो कोज नैन मे जादू गहर गभीर । अखियां पल-पल पलक मे दुनकि जात इठलात, लोक लाज के गिस, सजनि, करहुन यो उतपात । तुम ए भारी ती भट्, तनिक सम्हारहु चीर, ये चूंघट की ओट के वादी भये अधीर । निपट निराशा-जलधि में जदपि न उतरात, राऊ मदा प्यासे रहे ये दुखिया अकुलात । सिदाक झपकि झुवि जात हैं नयन, आरो सुकुमारि, या मोहक सकोच को ही जावी बलिहारि । सोचे चितवति हो सक लग तिरीछे वान, दोष न पाहू दीजिए, उलटया सकल विधान । टोना-सौ कछु है गयो सजनि, आपु ही आप, ता दिन ते जा से इतै तुम चितयो चुपचाप । राक, भावना, मटुति-हिय, रई-तिहारी प्रीत, परो,-लोचनन मै भरतो मुरस नेह नवनीत । हम विषपार्श जनम २'5