पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२३४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

है अवदय हो नर - नारी के भिन्न रूप का भेद यहाँ, पर, अक्षर, अन्यरत आदि में गर - नारी का भेट कहाँ ? आदि अत तो भेद-रहित है, केवल मध्य भेद मय है । इसी लिए है मध्य-काल मै, भेद - खेद का स्त्रेद यहा। सरी, सुनो, श्री नारायण है स्वय अद्धनारी नटराज, और अद्धनर नटोरवरी है परा प्रवृति इस जग में आज, भेद - खेद के गहन स्वेद के परे पहुंचना है मवको, जिरा छिन यह होवेगा उम छिन होगा जीवन्मुक्त समाज । यदि तुम प्रतिबिम्बित करते हो नारी-हिय को बासक, सम्ने, अगर तुम्हं तड़पा देतो है निरापिता को सिमक, सखे, तो तुम तडपो और वढाओ अपने वत्सल हस्त, सखे, जग, जग को तुम दिखलाने दो नीति-धरम को उराक, गले, अपने हाथ बढाकर, जिस दिन, उत्सुक' प्रीति लजाती-सी, दृग् मे भर, आत्मार्पण निधिया, ललवा-भरी, मलसाती-सी, जव आ जावे, अहो तुम्हारे सम्मुम प्यार-पगी शो यो- तब क्या न्यौछावर न करोगे गिज हिय निधि अकुलाती सी? २०९ हरिपपाया जनम के २७