पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१५३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सन्नाटे मे है फैमा हुआ, वह गुंझलाता-अकुलाता है। चक्कर मे है यह बेचारा, फिर भी सलना हो जाता है। जिनने कि निकट से देखा, वे बोले जन जवंगगन मय है, यह शिरप और विज्ञान अमित उसकी उन्नति का परिचय है, कुछ कहते है कि मनुज तो है क्षुत्क्षाम अधोगामी प्राणी, शुभ ऊव गमन की बात, कहो, इन मानव ने कब पहचानी पर, हमको तो यो लगता है जैसे कि मनुज है चक्कर मे, अपर, नीचे, नीचे, जपर, वह फंसा इसी आडम्बर मे। उस उन्नत(१) मानव को देखो, निरखो तो इस विज्ञानी को, इम पण्डित को, इस ध्यानी को, अवलोको इस अभिमानी को। इसकी आखो मै देखोगे तुम अति विकराल गुहा मागय । इसको त्यौरी में देखोगे तुग विकट वनगायो दानव । १५० हम विषपाय जनम के