पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१५०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उसने अपने इस दीपक से सब नक्षत्र विये अलोकित, उसने नदिमा को करलोलित उसने अर्णय किये विडोलित, झरति किये सृजन घोणा के सार-तार उसने निज कर से, फल गानवतो स्वर-गगा, लामा खोच नोल अम्बर से, उसने अवलोका इस जग को अपने उच्च चैतता-स्तर से, गूंय बना लाया नियमो की माला वह निज अन्तरतर से, पर, उसका प्रवास-पथ कितना बोहद था, कितना बोहड है। एक ओर लभु चेतन-दीपक, उधर तिमिर का वैभव जड है, जब एकाकी आदि मनुज ने अपने चारो मोर निहारा, तो दिखलाई दिया सभी दिशि उसको निपट विकट अंधियारा, एक ओर थे ऊँने भूपर, एक ओर थे गहरे सागर, वही पड़े थे भारी अजगर, कही दहाड रहे थे नाहर । हम विषपापी सनम के १२०