पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१४७

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क्या मानव जीवित है अब तक भी यह क्या महदाश्चय नहीं है? बली, भूधरामार भयकर, पूर्व जन्तु आज कही है। उनके अस्थि-पजरो के अश्मीभूत चिह्न मिलते है, लख विकराला कुतिया जिनकी, दशक-गण के दिल हिलते है। हुए एप्त ऐसे भी जिनको श्वासो मे खिचते थे हाथी, पर, वच रहा द्विपद, जिसका था तब कोई न सँगाती- साथी । समचर, मिले सहसू पाद जल-थल-चर, मिटे मेस्तनधारी बडे बडे पषो वाले ये मिटे भमकर सभी गगन चर। विन्नु बना लाया अपने यो, विगी तरह अति दुर्बल मह नर, यह मेर जिसे मारने मानो तुले हुए थे सक्ल चराचर अव तव निगल न पायी इमको सवनाग यो गहरी सनिका, एमपे आगे नाच भरी है सोधभरी ममृति की गणिपा। 1 १९५ दम विषणा गरम