भोजन के लिए उपले, ढाक या बबूत की लकड़ी या लकड़ी के कोयले उपयुक्त होते हैं । गैस के चूल्हों. मिट्टी के तैल के स्टोव तथा कुकर भी भोजन के काम, पाते हैं । विजली के चूल्हे भी काम देते हैं, परन्तु उनका बहुत कम प्रचार हुआ है। -चूल्हा पाक विद्या में प्रधान यन्त्र है। आजकल की. बहुत सी पढ़ी लिखी लड़कियों को चूल्हा बनाना नहीं आता। चूल्हे में गोबर मिट्टी लगाते जब वे मिसरानी को देखती हैं तो नाक-भौं सिकोड़ती हैं। परन्तु चूल्हा बनाना अनाड़ी आदमी का काम नहीं । चूल्हा बनाने में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए । (क) हवा का रुख बचाकर चूल्हा बनाना । क्योंकि हवा के रुख पर उसका मुख रहने से चूल्हा अच्छी तरह नहीं जलता । (ख) जमे हुए चूल्हे की अपेक्षा उठौवा चूल्हा अच्छा होता है। उसे हवा का रुख देख जी चाहे जहाँ रक्खा जा सकता है। (ग) वह ऐसा बनाना चाहिए कि पकाने के पात्र के चारों और समान रूप से आग लगे। रसोई कर चुकने पर चूल्हे को भली भाँति मिट्टी से पोत देना और उसकी राख आदि सब साफ कर देनी' चाहिए । पोतने की मिट्टी में थोड़ा ताजा गोबर मिलाने से वह मजबूत रहता है। कोयले का इस्तेमाल अंगीठी पर होता है। इसकी आंच तेज होने के कारण रसोई जल्द बनती है। पर स्वादिष्ट नहीं, क्योंकि धीमी आंच से ही रसोई में स्वाद बढ़ता है
- -भिन्न-भिन्न पदार्थों को पकाने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की
आँच लगाने की आवश्यकता है। कोई चीज धीमी आँच