पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/५२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काम को अपढ़ और खार्थी नौकरों पर छोड़ देना अत्यन्त दुःख की बात है। प्राचीन काल के इतिहास से पता लगता है कि महाराज नल और भीम जैसे प्रतिष्ठित योद्धा पाक विद्या के धुरन्धर आचार्य थे। रसोइये और महाराजिन कितनी गन्दी होती हैं तथा किस प्रकार नीरस रसोई बनाती हैं इसका पता तब चलता है जव किसी रईस के घर देर तक रहा जाय। हमने वहुत से रईसों के घरों पर भोजन किया है हम कह सकते हैं कि उससे हमें कुछ भी तृप्ति नहीं हुई है। कहीं कहीं तो वह अत्यन्त अरुचिकर ही प्रतीत हुआ है। सोचने की बात है कि जिस भोजन के द्वारा-शरीर, प्राण, मांस, रक्त, बुद्धि और जीवन बनता है उसे कैसे गैरों को सौंप दिया जाता है। जव से नई रोशनी का दौरदौरा हुआ है और मध्य श्रेणी की स्त्रियां भी फैशन के चुंगल में फंस गई है तब से पाक विद्या का विल्कुल ही पतन होगया है। ऐसे घरों में प्रायः ऐसे गन्दे, लड़के नौकर रखे जाते हैं जो अत्यन्त घिनोने, और अनाड़ी होते हैं, पर चूंकि वे झाडू, वुहारू, वर्तन, चौका सभी काम घेउन कर लेते हैं इस लिये एक ही नौकर रखने का सुभीता प्राप्त होने से उन्हें ज्यादा पसन्द किया जाता है। यदि कोई ऐसी ही असाधारण बात हो कि अवकाश ही न मिले तो बात दूसरी है, वरना जहां तक सम्भव हो प्रत्येक कन्या को पाक विद्या का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए, और यथा सम्भव उन्हें स्वयं रसोई बनाना चाहिए। चाहे वे गनी भी क्यों न हो। पाक विद्या में ध्यान देने योग्य बातें १-पाक विद्या सीखने वाली में पवित्रता, धीरज, शान्ति और